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सोमवार, 13 जनवरी 2025

अरविंद केजरीवाल के 2013 के अफिडेविट से आज तक: वादों की हकीकत और दिल्ली की राजनीति

2013 में जब अरविंद केजरीवाल ने भारतीय राजनीति में कदम रखा, तो उन्होंने लोगों से कई बड़े वादे किए थे। उनका मुख्य उद्देश्य भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई और राजनीति में बदलाव लाना था। उनका एक प्रमुख वादा था कि वह सत्ता के लालच से परे रहकर केवल सेवा कार्य करेंगे और किसी भी प्रकार के निजी लाभ से दूर रहेंगे। लेकिन आज, उनके कार्यों पर नजर डालते हुए ये सवाल उठता है कि क्या वह अपने वादों पर खरे उतरे हैं या फिर सत्ता के रंग में रंग गए हैं?

ये दस रुपए का अफिडेविट - 07.06.2013

1.बड़ा घर नहीं लूंगा 
2. गाड़ी नहीं लूंगा
3. सुरक्षा नहीं लूंगा 
4. जन लोकपाल बिल

वकीलों की फीस और NGOs की फंडिंग पर सवाल: न्यायिक पारदर्शिता की आवश्यकता

भारत में न्यायपालिका का प्रमुख उद्देश्य निष्पक्ष और स्वतंत्र न्याय प्रदान करना है, जिससे नागरिकों के अधिकारों की रक्षा हो सके। हालांकि, हाल के घटनाक्रमों ने यह सवाल उठाया है कि क्या हमारी न्यायिक प्रणाली में पारदर्शिता और जवाबदेही की कमी है, विशेषकर वकीलों की फीस और NGOs की भूमिका से संबंधित। इस संदर्भ में, कासगंज हत्याकांड के मामले में एनआईए कोर्ट के विशेष न्यायाधीश विवेकानंद शरण त्रिपाठी द्वारा दिए गए आदेश ने एक नया और संवेदनशील विषय उठाया है – वकीलों और NGOs के बीच पैसे का मायाजाल।


कासगंज हत्याकांड और न्यायिक आदेश

26 जनवरी 2018 को कासगंज में हुई चंदन गुप्ता की हत्या ने पूरे देश को झकझोर दिया था। इस घटना के बाद कई लोग इसे धार्मिक उन्माद का परिणाम मानते थे, क्योंकि यह घटना उस समय हुई जब चंदन गुप्ता एक तिरंगा यात्रा में शामिल हो रहे थे। इस मामले में कुल 28 आरोपी थे, जिनमें से 26 को दोषी ठहराया गया और उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। हालांकि, 2 आरोपियों को संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया गया।

इस फैसले के साथ, जज त्रिपाठी ने वकीलों और NGOs के फंडिंग नेटवर्क पर गंभीर सवाल उठाए हैं। उनका कहना था कि कई विदेशी और देशी NGOs आतंकवादियों और अपराधियों की पैरवी करते हैं, और यह देश के लिए चिंता का विषय है। खासकर, जब इन NGOs की फंडिंग के स्रोत की जांच नहीं की जाती, तो यह राष्ट्रविरोधी गतिविधियों को बढ़ावा देने का एक बड़ा कारण बन सकता है।

NGOs की भूमिका और फंडिंग की जांच की आवश्यकता

जज त्रिपाठी ने विशेष रूप से उन NGOs की भूमिका पर सवाल उठाया जो आतंकवादियों और राष्ट्रविरोधी तत्वों के मामलों में कानूनी सहायता प्रदान करते हैं। उन्होंने अपने आदेश में 7 NGOs का उल्लेख किया, जिनके बारे में आरोप है कि ये संगठनों ने भारतीय न्याय व्यवस्था को कमजोर करने की कोशिश की है। इन NGOs की फंडिंग का स्रोत भी स्पष्ट नहीं है, और यह सवाल उठता है कि क्या ये विदेशी फंडिंग के जरिए आतंकवादियों और अन्य अपराधियों का समर्थन कर रहे हैं।

जज त्रिपाठी के आदेश में इन NGOs की गतिविधियों और उनकी फंडिंग के स्रोतों की जांच करने का निर्देश दिया गया है। खासकर जब कोई आतंकी पकड़ा जाता है, तो ये NGOs उसके बचाव में खड़े हो जाते हैं और उनकी पैरवी करते हैं, जिससे उनका वित्तीय नेटवर्क और उद्देश्य संदिग्ध बन जाता है।

नीचे उन NGOs का विवरण दिया गया है, जिनका नाम जज त्रिपाठी के आदेश में लिया गया है:

  1. सिटीजन्स ऑफ जस्टिस एंड पीस, मुंबई
  2. पीपल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज, दिल्ली
  3. रिहाई मंच
  4. अलायन्स फॉर जस्टिस एंड एकाउंटेबिलिटी, न्यूयॉर्क
  5. इंडियन अमेरिकन मुस्लिम काउंसिल, वाशिंगटन डीसी
  6. साउथ एशिया सॉलिडेरिटी ग्रुप, लंदन
  7. जमीयत उलेमा हिंद का लीगल सेल

इन संगठनों की जांच से यह स्पष्ट हो सकता है कि क्या उनका उद्देश्य किसी आतंकवादी समूह या अन्य आपराधिक तत्वों का समर्थन करना है।

वकीलों की फीस और वित्तीय पारदर्शिता की आवश्यकता

जज त्रिपाठी के आदेश के एक अन्य महत्वपूर्ण पहलू ने वकीलों की फीस और उनकी वित्तीय पारदर्शिता पर भी सवाल उठाए हैं। उनका कहना है कि उच्च न्यायालयों और सुप्रीम कोर्ट में प्रैक्टिस करने वाले वकीलों की फीस का विवरण सार्वजनिक होना चाहिए। यह सार्वजनिक जानकारी यह सुनिश्चित करेगी कि वकील किसी बाहरी दबाव के तहत काम नहीं कर रहे हैं और उनकी फीस में कोई अनुचित लाभ या भ्रष्टाचार नहीं है।

इसके अतिरिक्त, जज त्रिपाठी ने यह भी प्रस्तावित किया कि वकीलों की संपत्ति और आयकर रिटर्न का विवरण भी सार्वजनिक किया जाए, ताकि यह स्पष्ट हो सके कि उन्होंने कितनी आय अर्जित की है और क्या उनके पास अवैध संपत्ति है। वकीलों के पेशेवर तौर पर पारदर्शी रहना न्यायिक प्रक्रिया में विश्वास बनाए रखने के लिए अत्यंत आवश्यक है।

रोहिंग्या मामले में वकीलों का विवादित रुख

जज त्रिपाठी के आदेश में एक और महत्वपूर्ण बिंदु सामने आता है – रोहिंग्या शरणार्थियों के मुद्दे पर उच्च न्यायालय और सुप्रीम कोर्ट में जिन वकीलों ने पैरवी की, उनके बारे में सवाल उठाए गए हैं। उदाहरण के लिए, रोहिंग्या मुसलमानों के मामले में जिन वकीलों ने इन शरणार्थियों की पैरवी की, उनमें प्रमुख नाम थे:

  1. डॉ. राजीव धवन
  2. प्रशांत भूषण
  3. डॉ. अश्विनी कुमार
  4. कोलिन गोंसाल्वेस
  5. फाली नरीमन (अब स्व. हो गए)
  6. कपिल सिब्बल

ये वकील ऐसे मामलों में जमानत या राहत दिलाने के लिए सक्रिय रहे हैं, जहां राष्ट्रीय सुरक्षा और कानून व्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। इस प्रकार के मामलों में यह भी जांच होनी चाहिए कि इन वकीलों को किन स्रोतों से वित्तीय सहायता मिल रही है और क्या उनका काम राष्ट्रविरोधी ताकतों के हित में तो नहीं हो रहा।

न्यायिक सुधार और पारदर्शिता की आवश्यकता

भारतीय न्यायपालिका की स्वतंत्रता और निष्पक्षता बनाए रखने के लिए आवश्यक है कि वकीलों और NGOs की गतिविधियों की पारदर्शिता सुनिश्चित की जाए। जज त्रिपाठी ने इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है, और यह एक मिसाल पेश करता है कि कैसे न्यायपालिका अपने आदेशों के माध्यम से राष्ट्रविरोधी गतिविधियों के खिलाफ कार्यवाही कर सकती है।

भारत में न्यायपालिका की स्वतंत्रता और निष्पक्षता की रक्षा करना बेहद महत्वपूर्ण है। यदि न्यायिक प्रणाली में भ्रष्टाचार और बाहरी दबाव बढ़ता है, तो इससे नागरिकों का विश्वास कमजोर हो सकता है। वकीलों और NGOs की भूमिका, उनकी फीस और फंडिंग की पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए ठोस कदम उठाए जाने चाहिए। जज त्रिपाठी का आदेश इस दिशा में एक ऐतिहासिक कदम साबित हो सकता है और यह देश में न्यायिक सुधार की दिशा में एक ठोस शुरुआत हो सकता है।

सोमवार, 2 दिसंबर 2024

आंध्र प्रदेश में वक्फ बोर्ड का पुनर्गठन: राजनीतिक विवाद और सांविधानिक पहलू

 आंध्र प्रदेश में वक्फ बोर्ड का पुनर्गठन: राजनीतिक विवाद और सांविधानिक पहलू

आंध्र प्रदेश की एन चंद्रबाबू नायडू सरकार ने राज्य के वक्फ बोर्ड के पुनर्गठन का निर्णय लिया है, जिससे राज्य में एक नया वक्फ बोर्ड गठित किया जाएगा। यह कदम राज्य में जारी राजनीतिक विवाद और वक्फ (संशोधन) बिल, 2024 को लेकर विपक्षी पार्टियों और मुस्लिम संगठनों के विरोध के बीच उठाया गया है।

आंध्र प्रदेश ने YSR कांग्रेस शासन द्वारा जारी वक्फ बोर्ड के पहले आदेशों को रद्द किया

वक्फ बोर्ड का निष्क्रियता और विवाद

आंध्र प्रदेश सरकार के आदेश के अनुसार, पूर्व मुख्यमंत्री वाईएस जगन मोहन रेड्डी की सरकार द्वारा गठित वक्फ बोर्ड मार्च 2023 से निष्क्रिय था। इस बोर्ड में सुन्नी और शिया समुदाय के विद्वानों, साथ ही पूर्व सांसदों का प्रतिनिधित्व नहीं था, जिससे वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन में समस्याएं उत्पन्न हो रही थीं। इसके अलावा, बार काउंसिल श्रेणी में जूनियर अधिवक्ताओं का चयन बिना उचित मानदंडों के किए जाने की वजह से वरिष्ठ अधिवक्ताओं के साथ हितों का टकराव हुआ था।

वहीं, एसके ख़ाजा को बोर्ड सदस्य के रूप में चुने जाने के खिलाफ भी शिकायतें आईं, खासकर उनके 'मुतवली' (वक्फ के प्रबंधक) के रूप में पात्रता को लेकर। बोर्ड का अध्यक्ष चुने जाने का मामला भी अदालतों में लंबित था, जिससे संचालन में और अधिक बाधाएं उत्पन्न हो रही थीं। इस स्थिति में राज्य सरकार ने यह निर्णय लिया कि जल्द ही एक नया वक्फ बोर्ड गठित किया जाएगा।

वक्फ (संशोधन) बिल 2024 पर विवाद

यह निर्णय तब लिया गया है जब पूरे देश में वक्फ बोर्डों के अतिक्रमण और ज़मीन के दावों को लेकर विवाद उठ रहे हैं। 8 अगस्त को केंद्रीय सरकार ने लोकसभा में वक्फ (संशोधन) बिल, 2024 पेश किया, जिसका उद्देश्य वक्फ बोर्ड के कामकाज को सरल बनाना और वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन में सुधार लाना था। हालांकि, यह बिल विपक्षी पार्टियों और मुस्लिम संगठनों के लिए विवाद का कारण बन गया। उनका कहना था कि यह बिल समुदाय के खिलाफ एक लक्षित कदम है और इसके माध्यम से उनके संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन किया जा रहा है।

संसदीय समिति की बैठकें और सरकार-विपक्ष की जंग

विपक्ष और सत्ताधारी पार्टी के बीच इस बिल को लेकर तीखी बहस जारी है। बिल को पेश करने के बाद, इसे एक संयुक्त संसदीय समिति को भेज दिया गया, जहां इसके प्रस्तावित संशोधनों पर सरकार और विपक्ष के सदस्य बहस कर रहे हैं। हाल ही में, लोकसभा ने इस समिति की कार्यावधि को अगले बजट सत्र के अंतिम दिन तक बढ़ाने का प्रस्ताव पारित किया है। इस निर्णय के बाद, यह उम्मीद जताई जा रही है कि इस मुद्दे पर और अधिक चर्चाएं और निर्णय होंगे, जो वक्फ बोर्ड के संचालन और उसकी कार्यप्रणाली को प्रभावित करेंगे।

क्या हैं इसके राजनीतिक और सांविधानिक पहलू?

वक्फ बोर्डों का मुद्दा भारतीय राजनीति और समाज में संवेदनशील रहा है। धार्मिक समुदायों की संपत्तियों का प्रबंधन हमेशा से ही राजनीति का हिस्सा रहा है, और जब राज्य सरकारें इन बोर्डों को बदलने का प्रयास करती हैं, तो यह विवादों का कारण बन जाता है। आंध्र प्रदेश में वक्फ बोर्ड के पुनर्गठन का निर्णय भी इसी तरह का एक संवेदनशील कदम है, जो राज्य के मुस्लिम समुदाय के बीच असंतोष उत्पन्न कर सकता है।

केंद्रीय वक्फ (संशोधन) बिल के विरोध में उठी आवाजें इसे धार्मिक समुदायों के अधिकारों पर आक्रमण मानती हैं। वहीं, सरकार का तर्क है कि यह बिल वक्फ संपत्तियों के बेहतर प्रबंधन के लिए लाया गया है। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि वक्फ बिल पर संसद में चल रही बहस और आंध्र प्रदेश सरकार के फैसले से आने वाले समय में क्या परिणाम निकलते हैं।

रविवार, 11 सितंबर 2022

जिहाद की वजह से रोहिंग्या का विनाश हो गया !


जिहाद की वजह से रोहिंग्या का विनाश हो गया !

- जिहाद दोतरफा कुल्हाड़ा है ये राज्य भी दिलाता है और राज्य छीन भी लेता है । रोहिंग्या म्यांमार में जिहाद कर रहे थे और इसी जिहाद की वजह से 8 लाख रोहिंग्याओं का म्यांमार से निष्कासन हो गया । 

- भारत का दुश्मन मीडिया बीबीसी अपने लेख में ये तो बताता है कि दिल्ली के मदनपुर खादर में रह रहे रोहिंग्या बहुत बुरी हालत में हैं लेकिन वो ये नहीं बताता कि आखिर रोहिंग्याओं ने म्यांमार के अंदर वो कौन से उपद्रव मचाए जिसकी वजह से 1978 मे, 1991 में, 2012 में, 2015 में और 2016 से 2018 तक म्यांमार की सरकार को रोहिंग्या पर सैन्य कार्रवाई करनी पड़ी ।

-1940 के दशक से रोहिंग्या लोगों ने म्यांमार को तोड़ने के लिए जिन्ना के रास्ते पर चलकर म्यांमार से अलग एक देश रखाइन बनाने की कोशिश की । म्यांमार के बौद्ध लोग ना तो हिंदुओं की तरह दयावान थे और ना ही उस वक्त के हिंदुओं के बड़े वर्ग की तरह मूर्ख कि किसी गांधी को अपना नेता बनाते और 100 जूते खाकर अपनी बेटियों का बलात्कार करवाकर अहिंसा की उपासना करते, इसलिए वो बार-बार ना सिर्फ रोहिंग्याओं को देश तोड़ने से रोक सके बल्कि 2017 में पूजनीय अशिन विराथू के नेतृत्व में उनको म्यांमार से बाहर करने में पूरी तरह कामयाब भी रहे । 

-म्यांमार की सरकार ने रोहिंग्याओं को नागरिकता से वंचित कर दिया और स्पष्ट रूप से ये कहा कि ये बंगाली लोग हैं और म्यांमार में औपनवेशिक प्रवासी हैं । यानी ये रोहिंग्या वो लोग हैं जिनको ब्रिटिश सरकार मजदूरी करवाने के लिए म्यांमार के अराकान में बांग्लादेश से लाई थी । 

-ये रोहिंग्या लोग म्यांमार में जिहाद कर रहे थे वहां शांतिप्रिय बौद्ध समुदाय की लड़कियों के साथ छेड़खानी और रेप कर रहे थे । रखाइन प्रांत के जिन इलाकों में इनकी बहुलता थी वहां पर बौद्ध मठों में घंटियां बजाने पर भी इन लोगों ने रोक लगा दी थी । ये रोहिंग्या लोग जिहाद की शिक्षाओं पर चलते हुए गैरमुसलमानों का संपूर्ण विनाश करके इस्लाम और शरीयत की सत्ता लाने का ख्वाब देख रहे थे । फिर एक बौद्ध साधु अशिन विराथु ने इनके खिलाफ पूरे म्यांमार में अभियान चलाया और इनको ठीक वैसे ही जवाब दिया जैसे देवों ने असुरों और दैत्यों का सर्वनाश किया और उनको पलायन पर मजबूर कर दिया । 

-अब ये अपराधी, आतंकवादी कौम भारत में लाखों की संख्या में घुस आई है और इनको मुसलमान होने का फायदा मिल रहा है थोक के भाव आधार कार्ड बनवाकर इन हिंदु बहुल विधानसभाओं में सुनियोजित तरीके से सेकुलर पार्टियों के द्वारा बसाया जा रहा है ताकी वोट के गणित को बदला जा सके और गजवा ए हिंद का रास्ता आसान बनाकर भारत को इस्लामिस्तान बनने के रास्ते पर अग्रसर किया जा सके ।

- दिल्ली के मदनपुर खादर में 250 रोहिंग्या टैंटों में रहते हैं और आज तक न्यूज वेबसाइट के मुताबिक इस जमीन का मासिक 7 लाख रुपया किराया केजरीवाल दिल्ली सरकार के राजकोष से देता है । यानी हिंदुओं के टैक्स के पैसे ही दिल्ली सरकार रोहिंग्या पर लुटा रही है । केजरीवाल की सरकार मुसलमानों के वोटों से बनी हुई सरकार है इसलिए वो इस्लाम की सरपरस्ती में ही काम करेगी लेकिन सवाल ये है कि मोदी कैबिनेट में केंद्रीय मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने क्यों ये ट्वीट किया कि रोहिंग्या को भारत सरकार सरकारी फ्लैट देगी ? 

-दरअसल हरदीप सिंह पुरी जैसे लोग बीजेपी में एक नहीं हजारों में हैं जो बड़े बड़े पदों पर विभूषित तो हो गए हैं लेकिन उनके मन में हिंदुत्व की कोई भावना नहीं है । ऐसे लोगों से हिंदुओं को आखिर कितनी उम्मीद रखनी चाहिए ये स्वयं हिंदुओं को ही सोचना होगा । आज भी पाकिस्तान से आए हिंदू शरणार्थी नारकीय जीवन जी रहे हैं और रोहिंग्याओं के लिए केजरीवाल सरकारी योजनाएं बनवा रहा है ।

-भारत सरकार को इस बात की स्पष्ट घोषणा करनी चाहिए कि अगर भारत के अंदर कोई भी शरण लेना चाहता है तो उसे पहले ये साबित करना होगा कि वो सभ्य है और हमारी नजर में सभ्य होने का अर्थ है हिंदू होना और इसीलिए हमारा स्पष्ट निवेदन है कि भारत सरकार सिर्फ उसी को भारत में शरण दे जो हिंदू धर्म के प्रति आस्था व्यक्त करें और मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम के आदर्शों पर ही चलने का संकल्प ले । इसके अलावा अन्य किसी को भी शरण देना हिंदू वोट से विश्वासघात है ऐसा हमारा स्पष्ट मानना है । इसके अलावा भारत सरकार को तुरंत सीएए और एनआरसी लागू करना चाहिए । भारत सरकार को श्रीमदभगवत गीता के रास्ते पर चलते हुए धर्मानुकूल आचरण करना चाहिए और इससे होने वाले साइड इफेक्ट्स की चिंता छोड़ देनी चाहिए ।