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रविवार, 11 सितंबर 2022

महालय श्राद्ध - श्राद्ध विधि

महालय श्राद्ध - 10 से 25 सितम्बर 2022

श्राद्ध पक्ष में अपनाए जाने वाले सभी मुख्य नियम
(- पूज्य संत श्री आशारामजी बापू के सत्संग प्रवचन से)

1) श्राद्ध के दिन भगवद्गीता के सातवें अध्याय का महात्म्य पढ़कर फिर पूरे अध्याय का पाठ करना चाहिए एवं उसका फल मृतक आत्मा को अर्पण करना चाहिए ।

2) श्राद्ध के आरम्भ और अंत में तीन बार निम्न मंत्र का जप करें ।

मंत्र ध्यान से पढ़ें :
देवताभ्यः पितृभ्यश्च महायोगिभ्य एव च ।
नमः स्वधायै स्वाहायै नित्यमेव नमो नमः ll

(समस्त देवताओं, पितरों, महायोगियों, स्वधा एवं स्वाहा सबको हम नमस्कार करते हैं । ये सब शाश्वत  फल प्रदान करने वाले हैं ।)

3) श्राद्ध में एक विशेष मंत्र उच्चारण करने से, पितरों को संतुष्टि होती है और संतुष्ट पितर आप के कुल-खानदान को आशीर्वाद देते हैं ।

मंत्र ध्यान से पढ़ें :

ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं स्वधादेव्यै स्वाहा ।

4) जिसका कोई पुत्र न हो, उसका श्राद्ध उसके दौहिक (पुत्री के पुत्र) कर सकते हैं । कोई भी न हो तो पत्नी ही अपने पति का बिना मंत्रोच्चारण के श्राद्ध कर सकती है ।

5) पूजा के समय गंध रहित धूप प्रयोग करें और बिल्व फल प्रयोग न करें और केवल घी का धुँआ भी न करें ।

6) अगर पंडित से श्राद्ध नहीं करा पाते तो सूर्य नारायण के आगे अपने बगल खुले करके (दोनों हाथ ऊपर करके) बोलें :
"हे सूर्य नारायण ! मेरे पिता (नाम), अमुक (नाम) का पुत्र, अमुक जाति (नाम), (अगर जाति, कुल, गोत्र नहीं याद तो ब्रह्म गोत्र बोल दें) को आप संतुष्ट/सुखी रखें । इस निमित मैं आपको अर्घ्य व भोजन कराता हूँ ।" ऐसा करके आप सूर्य भगवान को अर्घ्य दें और भोग लगायें ।

7) श्राद्ध पक्ष में १ माला रोज द्वादश अक्षर मंत्र "ॐ नमो भगवते वासुदेवाय" की जप करनी चाहिए और उस जप का फल नित्य अपने पितृ को अर्पण करना चाहिए ।

8) विचारशील पुरुष को चाहिए कि जिस दिन श्राद्ध करना हो उससे एक दिन पूर्व ही संयमी, श्रेष्ठ ब्राह्मणों को निमंत्रण दे दें । परंतु श्राद्ध के दिन कोई अनिमंत्रित तपस्वी ब्राह्मण घर पर पधारें तो उन्हें भी भोजन कराना चाहिए ।

9) भोजन के लिए उपस्थित अन्न अत्यंत मधुर, भोजनकर्ता की इच्छा के अनुसार तथा अच्छी प्रकार सिद्ध किया हुआ होना चाहिए ।
 पात्रों में भोजन रखकर श्राद्धकर्ता को अत्यंत सुंदर एवं मधुर वाणी से कहना चाहिए कि 'हे महानुभावो ! अब आप लोग अपनी इच्छा के अनुसार भोजन करें ।'
श्रद्धायुक्त व्यक्तियों द्वारा नाम और गोत्र का उच्चारण करके दिया हुआ अन्न पितृगण को वे जैसे आहार के योग्य होते हैं वैसा ही होकर मिलता है । (विष्णु पुराणः 3.16,16)

10) श्राद्धकाल में शरीर, द्रव्य, स्त्री, भूमि, मन, मंत्र और ब्राह्मण - ये सात चीजें विशेष शुद्ध होनी चाहिए ।

11) श्राद्ध में तीन बातों को ध्यान में रखना चाहिए : शुद्धि, अक्रोध और अत्वरा (जल्दबाजी नहीं करना)।

12) श्राद्ध में मंत्र का बड़ा महत्त्व है । श्राद्ध में आपके द्वारा दी गयी वस्तु कितनी भी मूल्यवान क्यों न हो, लेकिन आपके द्वारा यदि मंत्र का उच्चारण ठीक न हो तो काम अस्त-व्यस्त हो जाता है । मंत्रोच्चारण शुद्ध होना चाहिए और जिसके निमित्त श्राद्ध करते हों उसके नाम का उच्चारण भी शुद्ध करना चाहिए ।

यदि किसी कारण से आप पंडित द्वारा श्राद्ध नहीं करा पाए तो क्या करें.....

आप घर पर स्वयं भी कर सकते हैं  पितरों का तर्पण इस विधि से...

श्राद्ध के दिन गीता पाठ

जिस दिन आप के घर में श्राद्ध हो उस दिन गीता का सातवें अध्याय का पाठ करें  । पाठ करते समय जल भर के रखें ।

 पाठ पूरा हो तो जल सूर्य भगवन को अर्घ्य दें और कहें की हमारे पितृ के लिए हम अर्पण करते हें। जिनका श्राद्ध है , उनके लिए आज का गीता पाठ अर्पण।
 - श्री सुरेशानंदजी 

अगर पंडित से श्राद्ध नहीं करा पाते तो!

श्राद्ध करने में समर्थ न हो तो!

श्राद्धकाल में ब्राह्मणों को अन्न देने में यदि कोई समर्थ न हो तो ब्राह्मणों को वन्य कंदमूल , फल , जंगली शाक एवं थोड़ी - सी दक्षिणा ही दे। यदि इतना करने भी कोई समर्थ न हो तो किसी भी द्विजश्रेष्ठको प्रणाम करके एक मुट्ठी काले तिल दे अथवा पितरों के निमित्त पृथ्वी पर भक्ति एवं नम्रतापूर्वक सात - आठ तिलों से युक्त जलांजलि दे देवे । यदि इसका भी अभाव हो तो कही कहीं न कहीं से एक दिन का घास लाकर प्रीति और श्रद्धापूर्वक पितरों के उद्देश्य से गौ को खिलाये । 

इन सभी वस्तुओं का अभाव होने पर वन में जाकर अपना कक्षमूल ( बगल ) सूर्य को दिखाकर उच्च स्वर से कहेः

न मेऽस्ति वित्तं न धनं न चान्यच्छाद्धस्य योग्यं स्वपितृन्नतोऽस्मि ।
तृष्यन्तु भक्तया पितरो मयैतौ भुजौ ततौ वर्मनि मारूतस्य ॥

मेरे पास श्राद्ध कर्म के योग्य न धन - संपत्ति है और न कोई अन्य सामग्री। अतः मैं अपने पितरों को प्रणाम करता हूँ। वे मेरी भक्ति से ही तृप्तिलाभ करें । मैंने अपनी दोनों बाहें आकाश में उठा रखी हैं । - वायु पुराण

सूर्य नारायण के आगे अपने बगल खुले करके (दोनों हाथ ऊपर करके) बोलें :

"हे सूर्य नारायण ! मेरे पिता (नाम), अमुक (नाम) का बेटा, अमुक जाति (नाम), (अगर जाति, कुल, गोत्र नहीं याद तो ब्रह्म गोत्र बोल दे) को आप संतुष्ट/सुखी रखें । इस निमित मैं आपको अर्घ्य व भोजन कराता  हूँ ।"

- ऐसा करके आप सूर्य भगवान को अर्घ्य दें और भोग लगायें । - पूज्य बापूजी  


तुलसी
श्राद्ध और यज्ञ आदि कार्यों में तुलसी का एक पत्ता भी महान पुण्य देनेवाला है |

पद्मपुराण (ऋषिप्रसाद मैगजीन– अक्टूबर २०१४ से )
            

श्राद्ध के लिए विशेष मंत्र
" ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं स्वधादेव्यै स्वाहा । "
 इस मंत्र का जप करके हाथ उठाकर सूर्य नारायण को पितृ की तृप्ति एवं सदगति के लिए प्रार्थना  करें । स्वधा ब्रह्माजी की मानस पुत्री हैं । इस मंत्र के जप से पितृ की तृप्ति अवश्य होती है और श्राद्ध में जो त्रुटि रह गई हो वे भी पूर्ण हो जाती है।
- पूज्य बापूजी 

श्राद्ध में करने योग्य

श्राद्ध पक्ष में 1 माला रोज द्वादश मंत्र " ॐ नमो भगवते वासुदेवाय " की करनी चाहिए और उस माला का फल नित्य अपने पितृ को अर्पण करना चाहिए।
 - रेखा दीदी





शुक्रवार, 17 जुलाई 2020

जिनको अपनी दरिद्रता मिटाना है... सोमवती अमावस्या

जिनको अपनी दरिद्रता मिटाना है ध्यान दे दरिद्रता तो नहीं है, लेकिन धंधे में बरकत लाना है तो:

"तुलसी के पौधे की सोमवती अमावस्या के दिन 108 परिक्रमा करें।" 


सोमवती अमावस्या हिंदू धर्म में एक अत्यंत महत्वपूर्ण तिथि मानी जाती है, जो तब आती है जब अमावस्या सोमवार को पड़ती है। यह दिन भगवान शिव और पितरों की पूजा के लिए विशेष रूप से शुभ होता है, यह दिन अत्यंत शुभ और धार्मिक अनुष्ठानों के लिए उपयुक्त है।

सोमवती अमावस्या का महत्व:

  • धन और समृद्धितुलसी पूजन और व्रत करने से सुख-समृद्धि में वृद्धि होती है।
  • दांपत्य जीवन में सुख: महिलाएं अपने पति की लंबी आयु के लिए व्रत रखती हैं और पीपल वृक्ष की परिक्रमा करती हैं।
  • शिव पूजा का महत्व: भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा से इच्छाओं की पूर्ति होती है।