दलितों को शिक्षा से वंचित रखने का कथित अंबेडकरवादियों का झूठ: तथ्यों के साथ पर्दाफाश
भारत में शिक्षा के इतिहास को लेकर बहुत सी गलतफहमियाँ और आरोप लगाए गए हैं। विशेष रूप से दलितों को शिक्षा से वंचित रखने के आरोप अक्सर सुने जाते हैं। कुछ कथित अंबेडकरवादी इस तरह के दावे करते हैं, लेकिन क्या ये आरोप सही हैं? क्या ब्रिटिश शासन के दौरान भारत में शिक्षा की स्थिति वाकई इतनी दयनीय थी, जैसा कि कहा जाता है? आइए, ब्रिटिश अधिकारियों द्वारा की गई रिपोर्टों और तथ्यों के आधार पर इस मिथक का पर्दाफाश करें।
ब्रिटिश शासन के दौरान शिक्षा की स्थिति
सन 1800 के बाद, जब ब्रिटिश शासन ने भारतीय उपमहाद्वीप के विभिन्न हिस्सों पर अपना नियंत्रण स्थापित किया, तो उन्होंने भारतीय समाज में शिक्षा की स्थिति पर एक विस्तृत सर्वेक्षण किया। लंदन से प्राप्त निर्देशों के तहत, हर जिले का कलेक्टर व्यक्तिगत रूप से गांव-गांव जाकर शिक्षा का आंकलन करता था और जातिवार विवरण इकट्ठा करता था। इसके परिणामस्वरूप कई रिपोर्टें सामने आईं, जो आज भी भारतीय शिक्षा के इतिहास को समझने में सहायक हैं।
1. साक्षरता दर: 97 प्रतिशत
ब्रिटिश अधिकारियों की रिपोर्ट के अनुसार, 1812 तक भारत में साक्षरता दर लगभग 97 प्रतिशत थी। यह आंकड़ा बहुत ही चौंकाने वाला है, क्योंकि यह दर्शाता है कि भारत में उस समय लगभग हर व्यक्ति पढ़-लिख सकता था। सवाल यह है कि अगर दलितों को शिक्षा से वंचित रखा जाता, तो क्या इतनी बड़ी संख्या में भारतीय साक्षर हो सकते थे?
2. सभी जातियों के लिए स्कूल
ब्रिटिश अधिकारियों के मुताबिक, भारत के हर गांव में एक स्कूल था और इनमें सभी जातियों के बच्चे पढ़ाई करते थे। शूद्र जाति के लोग भी इन स्कूलों में पढ़ाते थे। रिपोर्टों से यह भी पता चलता है कि उन दिनों में अछूत जातियों के लोग भी शिक्षकों के रूप में काम कर रहे थे। इससे यह स्पष्ट होता है कि शिक्षा में जातिवाद की दीवारें बहुत कम थीं।
3. गुरुकुलों का योगदान
हालांकि ब्रिटिश अधिकारियों ने अपनी रिपोर्टों में गुरुकुलों (पारंपरिक शिक्षा संस्थानों) का जिक्र नहीं किया, लेकिन फिर भी यह तथ्य सामने आता है कि मद्रास प्रेसीडेंसी में इंग्लैंड से तीन गुना अधिक स्कूल थे। अगर ब्रिटिश रिपोर्ट में चर्च स्कूलों को भी शामिल किया गया, जो सप्ताह में केवल एक दिन ही चलाए जाते थे, तो भारतीय स्कूलों की संख्या कहीं अधिक थी। इससे यह स्पष्ट होता है कि भारत में शिक्षा का प्रसार बहुत व्यापक था।
4. शहरी स्कूलों में शिक्षा
बड़े शहरों में ऐसे कई स्कूल थे, जहां बच्चों को पढ़ाई के अलावा अंकगणित और अन्य विषयों की शिक्षा भी दी जाती थी। यह इंगित करता है कि शहरी क्षेत्रों में शिक्षा का स्तर उच्च था और वहां बच्चों को विविध प्रकार की शिक्षा प्राप्त हो रही थी।
5. शिक्षकों का वेतन
ब्रिटिश रिपोर्टों में यह भी उल्लेख किया गया है कि छात्रों के माता-पिता अपने बच्चों के शिक्षकों को उनके काम के अनुसार वेतन देते थे। यह वेतन अनाज से लेकर एक रुपये तक था। यह दर्शाता है कि शिक्षा को एक सम्मानजनक पेशा माना जाता था और शिक्षक को उचित सम्मान दिया जाता था।
गांधीजी का राउंड टेबल कॉन्फ्रेंस में आरोप
1929 में ब्रिटेन में हुई राउंड टेबल कॉन्फ्रेंस में महात्मा गांधी ने ब्रिटिश शासन पर आरोप लगाया था कि उन्होंने भारतीय शिक्षा व्यवस्था को नष्ट कर दिया। उस समय एक अंग्रेजी विद्वान फिलिप हाटडाग ने गांधीजी से इन आरोपों के समर्थन में सबूत मांगा। गांधीजी के निर्देश पर भारतीय शिक्षा की इन रिपोर्टों को फिलिप हाटडाग को भेजा गया, जो ब्रिटिश शासन की शिक्षा नीति के बारे में सटीक जानकारी प्रदान करती थीं। इन रिपोर्टों को बाद में 1939 में कलकत्ता विश्वविद्यालय ने दोबारा प्रकाशित किया और गांधीवादी धरमपाल ने इनका गहन अध्ययन कर एक पुस्तक भी लिखी, जिसमें भारतीय शिक्षा व्यवस्था के बारे में विस्तृत जानकारी दी गई।
निष्कर्ष
ब्रिटिश शासन के दौरान भारतीय शिक्षा की स्थिति उतनी खराब नहीं थी, जितना कि हमें बताया गया है। भारतीय समाज में शिक्षा का प्रसार व्यापक था, और यह सब जातियों के लिए उपलब्ध था। तथ्यों से यह स्पष्ट होता है कि दलितों को शिक्षा से वंचित रखने का आरोप पूरी तरह से झूठा है। इन रिपोर्टों के आधार पर यह साबित होता है कि भारतीय समाज में उस समय शिक्षा का स्तर बहुत उच्च था और हर वर्ग के लोगों को शिक्षा प्राप्त करने के समान अवसर मिल रहे थे।
इसलिए, हमें इन ऐतिहासिक तथ्यों को समझना चाहिए और जो झूठी धारणाएं बनाई गई हैं, उन्हें नकारते हुए भारतीय समाज की शिक्षा के इतिहास को सही तरीके से पेश करना चाहिए।
इस ब्लॉग पोस्ट में जो तथ्यों और रिपोर्टों का उल्लेख किया गया है, वे मुख्य रूप से ब्रिटिश अधिकारियों द्वारा 19वीं शताबदी के प्रारंभ में भारत में की गई शिक्षा संबंधित सर्वेक्षणों और रिपोर्टों पर आधारित हैं। इन रिपोर्टों को ब्रिटिश हाउस ऑफ कॉमन्स में पेश किया गया था और बाद में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के नेताओं, विशेष रूप से महात्मा गांधी और गांधीवादी विचारकों द्वारा उद्धृत किया गया। इन रिपोर्टों को भारतीय शिक्षा के इतिहास को समझने के संदर्भ में प्रमुख स्रोत के रूप में इस्तेमाल किया गया।
- विलियम एडम्स द्वारा बंगाल प्रेसीडेंसी की रिपोर्ट (1812): यह रिपोर्ट भारतीय शिक्षा प्रणाली और साक्षरता के स्तर के बारे में बताती है।
- टोमस मुनरो द्वारा मद्रास प्रेसीडेंसी की रिपोर्ट: इसमें मद्रास क्षेत्र के स्कूलों की स्थिति का उल्लेख है।
- विटनर द्वारा पंजाब की रिपोर्ट: इसमें पंजाब क्षेत्र में शिक्षा की स्थिति का विवरण दिया गया है।
- गांधीजी का राउंड टेबल कॉन्फ्रेंस में भाषण (1929): गांधीजी ने ब्रिटिश शासन के दौरान भारतीय शिक्षा प्रणाली को लेकर अपनी चिंताओं और आरोपों का उल्लेख किया था, जिनमें ये रिपोर्टें भी शामिल थीं।
- कलकत्ता विश्वविद्यालय (1939) की पुनः प्रकाशित रिपोर्ट: इन रिपोर्टों का पुनः प्रकाशन किया गया, जो आज भी भारतीय शिक्षा के इतिहास को समझने में सहायक हैं।
- धर्मपाल द्वारा भारतीय शिक्षा पर किताब: गांधीवादी विचारक धर्मपाल ने इन रिपोर्टों का अध्ययन किया और भारतीय शिक्षा के वास्तविक इतिहास पर आधारित पुस्तक लिखी।
आप इन रिपोर्टों और पुस्तकों को विभिन्न ऐतिहासिक शोध, भारतीय शिक्षा इतिहास और गांधीवादी साहित्य में ढूंढ सकते हैं।
यहां कुछ प्रमुख स्रोतों और किताबों के लिंक दिए गए हैं, जिनसे आप भारतीय शिक्षा इतिहास, ब्रिटिश रिपोर्टों और गांधीवादी दृष्टिकोण को बेहतर समझ सकते हैं:
गांधीजी की राउंड टेबल कॉन्फ्रेंस (1929):
- राउंड टेबल कॉन्फ्रेंस से संबंधित दस्तावेज़ों को आप ब्रिटिश संसद की वेबसाइट या अन्य ऐतिहासिक शोध संसाधनों से प्राप्त कर सकते हैं। यहां पर आपको गांधीजी का भाषण और उनके द्वारा उपयोग की गई रिपोर्टों का विवरण मिल सकता है।
धर्मपाल द्वारा भारतीय शिक्षा पर पुस्तक:
- गांधीवादी विचारक धर्मपाल ने भारतीय शिक्षा पर अपने शोध का संकलन किया था। उनकी पुस्तक "The Beautiful Tree: Indigenous Indian Education in the Eighteenth Century" में इस विषय पर विस्तार से चर्चा की गई है। यह पुस्तक भारतीय शिक्षा के इतिहास पर एक महत्वपूर्ण स्रोत मानी जाती है।
- आप इसे Google Books या Amazon पर पा सकते हैं।
ब्रिटिश रिपोर्टें (विलियम एडम्स, टोमस मुनरो, विटनर):
- इन रिपोर्टों का ऐतिहासिक दस्तावेज़ों के संग्रह में अध्ययन किया जा सकता है। ब्रिटिश संसद के संग्रहालय या British Library में इन रिपोर्टों की डिजिटल कॉपियां उपलब्ध हो सकती हैं।
- आप ब्रिटिश पार्लियामेंट की वेबसाइट पर भी इन रिपोर्टों को ढूंढ सकते हैं: UK Parliament Website
कलकत्ता विश्वविद्यालय की रिपोर्ट (1939):
- इस रिपोर्ट को भारतीय विश्वविद्यालयों के शैक्षिक और ऐतिहासिक संग्रहों से प्राप्त किया जा सकता है। यह विशेष रूप से Calcutta University Archives और अन्य भारतीय शोध संस्थानों में उपलब्ध हो सकती है।
इन संसाधनों के माध्यम से आप भारतीय शिक्षा के इतिहास के विभिन्न पहलुओं और ब्रिटिश शासन के दौरान किए गए शिक्षा संबंधी सर्वेक्षणों के बारे में और अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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