"सदाचारी एवं संयमी व्यक्ति ही जीवन के प्रत्येक
क्षेत्र में सफलता प्राप्त कर सकता है।"
जब स्वामी विवेकानंद जी विदेश में थे, तब ब्रह्मचर्य की चर्चा छिड़ने पर उन्होंने कहाः "कुछ दिन पहले एक भारतीय युवक मुझसे मिलने आया था। वह करीब दो वर्ष से अमेरिका में ही रहता है। वह युवक संयम का पालन बड़ी दृढ़ता पूर्वक करता है। एक बार वह बीमार हो गया तो उसने डॉक्टर को बताया। तुम जानते हो डॉक्टर ने उस युवक को क्या सलाह दी ? कहाः "ब्रह्मचर्य प्रकृति के नियम के विरूद्ध है। अतः ब्रह्मचर्य का पालन करना स्वास्थ्य के लिए हितकर नहीं है।ʹ
उस युवक को बचपन से ही ब्रह्मचर्य-पालन के संस्कार मिले थे। डॉक्टर की ऐसी सलाह से वह उलझन में पड़ गया। वह मुझसे मिलने आया एवं सारी बातें बतायीं। मैंने उसे समझायाः तुम जिस देश के वासी हो वह भारत आज भी अध्यात्म के क्षेत्र में विश्वगुरु के पद पर आसीन है। अपने देश के ऋषि-मुनियों के उपदेश पर तुम्हें ज्यादा विश्वास है कि ब्रह्मचर्य को जरा भी न समझने वाले पाश्चात्य जगत के असंयमी डॉक्टर पर ? ब्रह्मचर्य को प्रकृति के नियम के विरूद्ध कहने वालों को ब्रह्मचर्य शब्द के अर्थ का भी पता नहीं है। ब्रह्मचर्य के विषय़ में ऐसे गलत ख्याल रखने वालों से एक ही प्रश्न है कि आपमें और पशुओं में क्या अन्तर है ?"
ब्रह्मचर्य सभी अवस्थाओं में विद्यार्थी, गृहस्थी, साधु-सन्यासी, सभी के लिए अत्यन्त आवश्यक है।
सदाचारी एवं संयमी व्यक्ति ही जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सफलता प्राप्त कर सकता है। चाहे बड़ा वैज्ञानिक हो या दार्शनिक, विद्वान हो या बड़ा उपदेशक, सभी को संयम की जरूरत है। स्वस्थ रहना हो तब भी ब्रह्मचर्य की जरूरत है, सुखी रहना हो तब भी ब्रह्मचर्य की जरूरत है और सम्मानित रहना हो तब भी ब्रह्मचर्य की जरूरत है।
स्वामी विवेकानन्द के जीवन में संयम था तभी तो उन्होंने पूरी दुनिया में भारतीय अध्यात्म-ज्ञान का ध्वज फहरा दिया। हे भारत के युवक व युवतियो ! यदि जीवन संयम, सदाचार को अपना लो तो तुम भी महान से महान कार्य करने में सफल हो सकते हो।
Source: https://www.hariomgroup.org/hariombooks_satsang_hindi/PrernaJyot.htm

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